रविवार, 11 दिसंबर 2016

यश सेवा समिति की सार्थक पहल

शुक्रवार, 9 दिसम्बर,2016
प्रमुख समाज सुधारक श्री यशपाल भाटिया जी की तीसरी पुण्यतिथि पर भाटिया कालेज में प्रथम मुफ्त जाँच शिविर लगाया गया | 10 बजे मरीजों की  OPD स्लिप बननी शुरू हो गई थी ,धीरे धीरे मरीजों की संख्या बढती रही उसके बाद 11 बजे डॉक्टर आ गए | डॉक्टरों का स्वागत तुलसी गमला देकर किया गया |
महिलाओं की जाँच की व्यवस्था बंद कमरे में की गई थी राजीव गाँधी कैंसर हॉस्पिटल की अनुभवी गायनोकॉलोजिस्ट डॉ.इंदु ने सब महिलाओं से उनका मेडिकल इतिहास जाना और उचित सुझाव देकर कैंसर की जाँच की | महिलाओं का पेप्स टेस्ट किया गया जिसकी रिपोर्ट 15 दिन बाद दी जाएगी |
E.N.T. स्पेशलिस्ट डॉ. शर्मा ने महिलाओं एवं बुजुर्गों की नाक ,कान गले की जाँच की |जाँच शिविर 2 बजे तक चला उसके बाद समिति के सथाई सदस्यों को भी तुलसी गमले भेंट में दिए गए |
 
                     रिपोर्ट : सरिता भाटिया








शनिवार, 18 जून 2016

दहेज़

जब इंदु के बेटे की शादी के लिए लड़की पसंद कर ली गई तो घर में ख़ुशी का माहौल था | .......
इंदु शुरू से ही दहेज़ के खिलाफ थी इसलिए उसने सबसे पहले ही कहना शुरू कर दिया कि हमें सादगी से शादी करनी है ,पर कोई सुनने को तैयार नहीं था | सब कहने लगे आपको सादगी से करनी है पर लड़की वालो के कुछ अरमान होते हैं ...लड़की के भी अरमान हैं ....
आखिर इंदु ने कहा ठीक है जो आप सबको ठीक लगे कर लीजियेगा ... पर मुझे ज्यादा तामझाम नहीं चाहिए यह बात वहां तक पहुंचा दीजिये |
फिर बात छिड़ी कि वो लड़की वाले हैं अगर वो लड़के को 11,000  रुपये शगुन दे रहे हैं सूट दे रहे हैं तो हम कोई कम थोड़ी ना हैं .. 5100 लड़की को और दो सूट तो बनते ही हैं |
बाकी डिब्बे वगेरह वो ज्यादा देंगे हम कुछ कम कर देंगे |  ... जैसे तैसे  सगाई की बात खत्म हुई ...
फिर त्यौहार आने लगे तो लड़की वाले पूछने लगे हमने त्यौहार देने आना है .. पर इंदु ने पहले ही कह दिया हमारे यहाँ शादी के बाद ही त्यौहार वगेरह करते हैं ...
जिस दिन त्यौहार मनाने सब बैठे तो सभी इकट्ठे बैठे थे ....
तभी इंदु की दादी सास ने पूछा ... इंदु बेटे के ससुराल से क्या आया है त्यौहार पर ...इंदु ने कहा मैंने मना कर दिया वो तो आना चाहते थे .... पर हमें कुछ नहीं चाहिए ...
दादी सास बोली वाह तुमने तो लड़की वालों के पैसे बचा दिए ... तभी उसके ससुर बोले इसने उनकी बेइज्जती कर दी है ऐसा कहकर .. मैं उनको दोबारा बुलाता हूँ आकर मिलें ....
इंदु अवाक थी यह सब सुनकर उसने दहेज़ के लिए मना करके उनकी कैसे बेइज्जती कर दी थी .....

शुक्रवार, 25 मार्च 2016

चौथा विश्व मैत्री सम्मलेन

दोस्तों चतुर्थ विश्व मैत्री सम्मलेन बीकानेर में 5 और 6 मार्च को होना तय हुआ था ,इसके लिए लगभग 2 महीने पहले सोशल मीडिया पर लिखित परिचर्चा मंगवाई गई थी ,जिसमे लगभग 350 लोगों ने अपनी प्रविष्टि भेजी थी उन्हीं में से 100 प्रतिभागी चुने गए थे परिचर्चा के आधार पर  जिसका विषय था 'विश्व मैत्री और भाईचारे में सोशल मीडिया की भूमिका और खट्टे मीठे अनुभव' .. जिनको बीकानेर जाना था ... मेरा यह पहला अवसर था दिल्ली से बाहर सम्मान समारोह के लिए जाने का ... इसलिए पूरी तरह से किशोर जी और शशि दी पर निर्भर थी ..मैंने उनको कह दिया था जैसे आप जाएँ जब आप जाएँ मुझे साथ ही जाना है इसलिए मुझे उनके साथ 3 मार्च को ही जाना था क्योंकि सारा संयोजन का भार उन्ही पर था ... तो वो घड़ी आ गई जब मैंने किशोर जी ,शशि दी ,किरण बाला जी, मीता राय के साथ अपना सफ़र शुरू किया दूसरे कम्पार्टमेंट में संजय भाई और बादल भाई भी हमारे साथ थे ... गाड़ी अपने सही समय पर थी 11.40 पर गाड़ी रवाना हो चुकी थी मेरा यह सफ़र गीतों भरा रहा क्योंकि मुझे नींद आई नहीं और पूरी रात गाने सुनने में निकल गई थी ... सुबह 7.30 बजे बीकानेर पहुँचते ही आदरणीय गोवर्धन चौमाल जी और राजाराम स्वर्णकार जी पहुँच गए थे अपनी टीम के साथ ...  उन्होंने हमारा ठहरने का प्रबंध होटल शिवा में किया था जो कुछ ही दूरी पर था

सोशल मीडिया यानि आभासी दुनिया किसी का कुछ पता नहीं कौन क्या है ? या यूँ कहें ब्लाइंड गेम जिसमे अच्छा बुरा होने की दोनों संभावनाएँ बनी रहती हैं ...  जो  आप सबकी संस्था ''हम सब साथ साथ '' द्वारा आयोजित किया गया प्रतिभा प्रदर्शन और सम्मान समारोह .....  अब तक के सोशल मीडिया के सफ़र में काफी खट्टे मीठे अनुभव थे लेकिन बीकानेर में सिर्फ मीठे ही मीठे अनुभव हुए ...
...  प्रत्यक्ष मिलन हो रहा था इस आभासी दुनिया से जुड़े लोगों का लेकिन बीकानेर विश्व मैत्री सम्मलेन में हमारे साथ सब अच्छा ही अच्छा हुआ और यह वहम जाता रहा कि यह एक आभासी दुनिया के लोगों का मिलन समारोह है .. बेमिसाल मेहमान नवाजी परोसी गई बेमिसाल खाने के साथ  ...

पहले दिन उद्घाटन के बाद,चित्र प्रदर्शनी और फिर दीप प्रज्वलन के बाद कार्यक्रम शुरू हुआ  .... परिचय सत्र में सबसे रूबरू होने का मौका मिला जिसमे नए पुराने काफी दोस्तों से मिलने और कुछ को और करीब से जानने का सुनहरा अवसर मिला ..परिचय सत्र के बाद परिचर्चा सत्र में मैत्री-भाईचारे के प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया की भूमिका पर कुछ प्रतिभागियों ने अपने अपने विचार रखे उसके बाद भोजन तैयार था ..  संयोजकों में जैसे किशोर जी शशि दी पर पूरी जिम्मेवारी थी वहीँ स्थानीय संयोजकों में आशा दी और गोवर्धन चौमाल जी ,राजाराम स्वर्णकार जी और पूरी की पूरी टीम जी जान से इस प्रोग्राम को सफल बनाने में लगी थी  ... आशा दी और गोवर्धन जी तो ऐसे तनमन धन से लगे थे जैसे बेटी की शादी करने जा रहे हों ..आशा दी सबको बार बार पूछ रही थी आपने खाना खाया ..
उसके बाद शुरू हुआ काव्यपाठ ... और फिर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम जिसमे कुछ सथानीय कलाकारों ने और दूर दूर से आये प्रतिभागियों ने भाग लिया .. जो  लगभग रात 1.30  तक चला ...

दूसरे दिन सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में , कन्या भ्रूण हत्या, लिव इन रिलेशनशिप पर परिचर्चा के अलावा कवि सम्मेलन,पुस्तकों का विमोचन और फिर प्रतिभागियों के सम्मान का सिलसिला शुरू हुआ जो शाम 5 बजे तक चला .. उसके बाद सब अपने अपने घूमने अनुसार निकलते गए .. .. कुछेक की वापिसी रात को थी कुछेक की अगले दिन की थी ... यानि 7 मार्च को ... 
राजस्थान के इस गंगा यमुनी तहजीब के शहर बीकानेर से हम लेकर आये प्यार का, अतिथ्यभाव का एक अनमोल खजाना जिसमें आदरणीय चौमाल जी ,आशा जी ,राजाराम स्वर्णकार जी अपने सब साथियों के साथ अग्रणी भूमिका में रहे ... जो एक धरोहर की तरह हमने सहेज लिया ... 

दूसरा खजाना मिला कुछ ख़ास दोस्तों का वैसे तो वहां बहुत सारे नए दोस्तों से मिले जिनमें मिले कुछ नन्हे दोस्त जिन्होंने अपनी अद्भुत प्रतिभा से सबका मन जीत लिया और फेसबुक पर हमारे सबसे छोटे दोस्त बने.. जिसमें अश्मिता गंगटोक [सिक्किम] से और वान्या द्वारका [दिल्ली] से आईं थी .. 
फेसबुक पर ही मेरे भाई, भारत चौधरी से मिलना हुआ पहली बार यहीं पर ...

तीसरा सबसे ऊपर रहा एक ऐसी शख्शियत से मिलना जिनके बारे में मैं कुछ जान ही नहीं सकती थी अगर मैं बीकानेर की सैर को निकल जाती या उस दिन शिवरात्रि के लिए मंदिर चली जाती ...इसीलिए नहीं घूम पाए हम वहां के जूनागढ़ का किला ,चूहों वाली माता का मंदिर ... और भी कई दर्शनीय स्थल.. हम मिलने गए किशोर राज गाँधी जी से ...जिनकी कर्मभूमि है एक शमशान घाट जिसको वहां पर कल्याण भूमि प्रन्यास के नाम से जाना जाता है...  जिनका दिल धडकता है हर उस शक्स के लिए जिसे अपनों की जरुरत होती है ... जब भी किसी लावारिस को जरुरत होती है बाप की ,भाई की वो एक पल भी नहीं गँवाते भागते हुए जाते हैं और उनका संस्कार करते हैं ... हम लेकर आये उनसे आशीर्वाद बहुत सारी पुस्तकों के साथ ... कुछ चित्र वहां के भी ... 
बढ़ते हैं दोस्तों यादों के कारवां के साथ कुछ चित्रों के संग .... इंतज़ार में ... फिर से मिलने को आप सब से कहीं ना कहीं किसी मोड़ पर ... राहे जिंदगी में ...
             
            लेखिका ......सरिता भाटिया 




 







 



 


गुरुवार, 17 मार्च 2016

अनमोल रिश्ता [ लघुकथा ]


आज अनु नवरात्रि की पूजा करने बैठी ही थी ..  उसने जैसे ही दिया जलाया उसकी आँखें नम हो आई और आँसू बह निकले ..
''अभी अभी तो सन्देश आया था उसे .. जानू  जल्दी करो नाश्ता करने के लिए आ जाओ देर हो रही है ऑफिस के लिए ...
हाँ अभी आई बस जोत जगा कर ... उसने भी सन्देश भेज दिया था
हाँ चलो ना ... उसने पूजा से उठते ही सन्देश भेजा ...
हाँ तो चलो ...
और दोनों नाश्ता करने लगते थे ''.......................

कैसा अद्भुत बंधन बन गया था दोनों में ... मीलों की दूरी थी दोनों में ...कभी मिले नहीं थे वो ... फिर भी इतनी नजदीकी का अहसास था दोनों में .. एक अद्भुत रूहानी रिश्ता ..
दोनों एक दूसरे की पल पल की चिंता करते थे बिना इसकी परवाह किये कि आखिर उनके बीच रिश्ता ही क्या था...
 ...रिश्ता ... एक ऐसा शब्द जिसके सामाजिक तौर पर बहुत मायने थे पर रूहानी तौर पर सिर्फ एक दूसरे से यह अटूट प्यार था ,चिंता थी एक दूसरे की ,संभल था एक दूसरे का ,एक आत्मविश्वास था सदा साथ चलने का सब कठिनाईयों का मिलकर सामना करते हुए ...
यह क्यों एक याद बनकर अनु की आँखों के रास्ते टपकने लगे थे जोत जलाते हुए ,,,,
यादें .. शायद हमेशा ही सुकून देती हैं कभी आँसू रूप में बहकर ... कभी जिंदगी में एक सबक देकर ...
अनु के पूजा के समय निकलते आँसू उसकी मन की व्यथा कह गए थे ... उसे याद आ रहा था कोई जिसे उसने पल पल अपने साथ पाया था हर ख़ुशी के गम के लम्हों में .. कोई ख़ास ,कोई अपना ... जब दूरी कभी मायने नहीं बनी थी उसके लिए .. बस ख्वाहिश थी उसे एक पल देख लेने की ...
इतने बरस ऐसे बीत गए थे साथ चलते चलते कि अब उसकी खबर न मिलना उसके लिए नाउम्मीदी का एक ऐसा साया लेकर आया था जो उसके भविष्य के आगे आ खड़ा हुआ था ...
उसे पल पल जरुरत थी उसकी हर फैसले में ... एक नैतिक सहारा था उसका जो छिन गया था ..
पता नही यह आदत बन गई थी उसकी या एक ऐसा भरोसा जो किसी रिश्ते की रस्मों में बंधे बिना प्रगाढ होता जा रहा था |
उसने उसे बहुत सन्देश भेजकर समझाने की कोशिश की थी कि जो भी दुःख आये हैं मिलकर बाँट लेंगे पर एक दूसरे का नैतिक सहारा बने रहेंगे ... ऐसे ही जिंदगी कट जाएगी मिलजुल कर .... दूर रहते हुए भी साथ साथ चलते हुए ...
लेकिन शायद नाकाम रही थी अनु अपने अथक प्रयासों में ...
शायद उसने खो दिया था एक हमसफ़र जिसके साथ रिश्ता नहीं बना पाई थी वो दुनिया की नजरों में ... पर तोड़ भी तो नहीं पाई थी वो उस रिश्ते को जिसका कोई नाम नहीं था पर फिर भी वो .."अनजाना बंधन" ..उसके लिए ''अनमोल रिश्ता '' बन गया था ... जिसमे अनु अपना वजूद खो चुकी थी ...
पर 'उसे' "कोई मिल गया " था ,इसलिए उसे अभी अनु की जरूरत नहीं थी ....
..........................
लेखिका :... सरिता भाटिया .... 

शनिवार, 30 जनवरी 2016

दीक्षांत समारोह

A grand evening with DCA on 16th Jan.,2016 .. दिल्ली कोलाज ऑफ़ आर्ट के साथ एक भव्य शाम बिताने का स्नेहिल निमंत्रण कुछ दिन पहले मिला । जिस बारे में व्हाट्सऐप से ,फेस बुक से और ख़ास तौर पर कॉल करके भी सूचित किया गया । यह मात्र एक निमंत्रण नहीं था ...
ये नतीजा था ..छात्रों की एक वर्ष की मेहनत का ,
यह ब्यौरा था...DCA के साथ बिताये बहुमूल्य समय का,
एक प्रोत्साहन था... आगे बढ़ने का,
एक जज्बा था...कुछ कर दिखाने का,
यह लम्हा था ... अध्यापकों के गर्व का,
यह सम्मान था.. आये हुए अतिथियों का,
यह समय था... सबसे मिलने का ,यादें समेटने का ,खुशियाँ बटोरने का, खुशियाँ बाँटने का ...
यह रंगीन शाम थी ... दिल्ली कोलाज ऑफ़ आर्ट के दीक्षांत समारोह  की ,जो 16 जनवरी को साईं ऑडिटोरियम में होना तय हुआ था । सबके मिलने का समय रखा गया था दोपहर 1.30 बजे का जबकि सभी प्रबंध करते करते 2.30 बज चुके थे .. सबसे पहले मुख्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वल्लित किया गया और मुख्य अतिथियों को पुष्पकुंज और शाल देकर सम्मानित किया गया ।उसके बाद विधिवत कार्यक्रम शुरू हुए .. बच्चों द्वारा एक परफॉरमेंस और फिर B C Sanyal awards  से awardees को नवाजा गया जिनमें प्रमुख थे ..

अमित कपूर जी
अमित दत्त जी
निलादरी पॉल जी
सुनीत चोपड़ा जी
मोहन सिंह जी
मनोज खुरील जी
नीरज गोस्वामी जी
यह सभी अपने अपने क्षेत्र में महान विभूतियों के नाम हैं जिनको मंच पर बुलाकर Sh. R. S. Verma जी  द्वारा  सम्मानित किया गया ...
इसके बाद छात्र छात्राएं अपनी अपनी परफॉरमेंस देते रहे एवं बीच बीच में पहले वर्ष,द्वितीय वर्ष,तृतीय वर्ष वालों को डिप्लोमा दिया गया और विशेष छात्रों को तृतीय ,द्वितीय और प्रथम अवार्ड से नवाजा गया । उसके बाद गर्मागर्म पकौड़े और चाय का इंतज़ाम था । लगभग 1 घंटे बाद दोबारा से कार्यक्रम शुरू हुआ ...जिसमें बाकी छात्रों को सम्मानित किया गया और कुछ और पर्फोर्मांसस दी गईं ।
दोस्तों ऐसे अवार्ड समारोह तो कई देखे हैं और बहुत सारे अवार्ड्स बाँटे भी हैं लेकिन DCA के दीक्षांत समारोह में आकर जो विशेष सीखने को मिलता है वो है सबको एक बराबर समझना ,जिंदगी की पाठशाला में टिके रहने के लिए जो अनुभवों की जरुरत होती है DCA के ओनर यानि मालिक इसकी स्थापना करने वाले श्री अश्वनी पृथ्वीवासी जी आपको सहज ही बातों बातों में दे जाते हैं यह निश्चित ही उन्होंने अपने गुरु श्री स्नेह भसीन जी एवं माता पिता जी एवं अन्य गुरुजनों से सीखा है .. यहाँ आकर वसुदेव कुटुम्बकम् की परिभाषा भी साबित होती है अश्वनी सर ने अपना सरनेम त्याग कर पृथ्वीवासी साथ लगाया है ...
यहाँ आकर छात्रों को सीखना चाहिए कि आपका गुरु कोई भी हो सकता है चाहे उम्र में वो छोटा हो लेकिन अपने क्षेत्र में वो निश्चय ही आपका गुरु है ... मैंने तो इसी तरह अपने से छोटे दोस्तों से ,बेटे से भी बहुत कुछ सीखा है जो मेरे लिए अतुलनीय है .. आप की आप जानें .. यहाँ आकर आप सीखें नम्रता ,सहजता,मेहनत,  का पाठ . ... कहीं कुछ गलत लिखा गया हो तो कृपया उसे अन्यथा ना लें मुझे सुधार करने के लिए बता दें .. अपनी यादों के पिटारे में अब सब समेटती हूँ फिर कुछ नए अनुभवों के साथ हाजिर होती हूँ ... जल्दी ही ..

चलने की कोशिश तो करो,
हर कदम दिशाएं बहुत है ...
रास्तों में बिखरे काँटों से न डरो ,
तुम्हारे साथ दुआएं बहुत हैं ...
             लेखिका ... सरिता भाटिया   

 आप भी समारोह की कुछ तस्वीरों का आनन्द लीजिये  ...👇👇👇👇














शनिवार, 9 जनवरी 2016

मन्नत [लघुकथा]

आज 12 मई को एकाएक याद हो आया वो बिन मौसम बरसात का दिन ... बरसात भी इतनी कि थमने का नाम ही नही ले रही थी ... मनीष ने आज के दिन अपने नए घर पर माता रानी का जागरण करवाने की सोची थी ... टेंट लगने के बाद सब इंतजार कर रहे थे आज के जागरण का ...क्योंकि एक भव्य जागरण की तैयारी की थी मनीष ने अपने बढ़े भाई यश के साथ मिलकर ... सबको न्योता दिया था ... इतनी बारिश हुई कि सिर्फ टेंट लगा रह गया था और कुछ भी लगा पाने की नौबत ही नही आई थी ... सारी दरियां गलीचे गीले हो गए थे ....टेंट पूरा टपक रहा था .... कहते हैं न जब तक भगवान का इशारा नहीं होता तब तक इंसान की क्या मजाल कि अपनी बातें मनवा ले ... आज फिर एक जागरण की तमन्ना अधूरी रह गई थी ....
मनीष की माँ ने यश के पैदा होने से पहले एक मन्नत मांगी थी ... माता रानी के जागरण की ... खुशियाँ दी भगवान् ने पर दुनियादारी में उलझ कर यह तमन्ना कहीं जिंदगी की दौड़ धूप में खो गई थी ... मनीष के पैदा होने पर फिर से मन्नत बलवती हो गई थी पर पूरी नहीं हो पाई थी ... दिन गुजरते रहे .... समय ने फिर करवट ली .. फिर यश के बेटों के जन्म पर तमन्ना हो आई थी जागरण करवाने की पर मनीष की माँ की यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई थी ..भगवान ने दिल खोल कर दिया था पर एक मन्नत पूरी नहीं हो पाई थी .. आज मनीष के बेटे के जन्म पर माँ अपने घर के आगे माता रानी का जागरण करवाना चाहती थी पर मनीष ने इसे अपने नए घर पर ही रखा था कि घर तो एक ही है न माँ ... पर भगवान् को कुछ और ही मंजूर था इसलिए जागरण तो हुआ पर एक धर्मशाला में ... पनाह लेकर ... एक मध्य वर्गीय परिवार की यही कहानी रही है कुछ जरूरतें पूरी करने के लिए कुछ मन्नतें कुर्बान चढ़ती आई है ...इसलिए जितना जब हो सके करो पर कभी मन्नतें मत मांगो .. तब तो बिलकुल नहीं जब आप एक मध्य वर्गीय परिवार से सम्बंधित हैं ...  क्योंकि फिर मन्नतें ताउम्र आपका पीछा नहीं छोड़ेंगी और मनीष की माँ की तरह ही आपकी साँसों के साथ ही यह ख़त्म हो जायेंगी ...
                                                लेखिका ....  सरिता भाटिया